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कृषि उपज मंडी में हुआ था घोटाला: आईएएस अधिकारी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट, 8 करोड़ के घोटाले का है मामला... पढिय़े पूरी खबर बस एक क्लिक में

इंदौर। लगातार अनुपस्थित रहने पर कोई ने मध्यप्रदेश शासन के एक आईएएस अधिकारी का गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। बताया जा रहा है कि करीब 19 वर्ष पूर्व 8 करोड़ रूपये का घोटाला कृषि उपज मंडी में हुआ था। मामले की जांच में करीब 5 वर्ष से आईएएस को बुलाया जा रहा था। लेकिन आईएएस अधिकारी की अनुपस्थिति से नाराज होकर कोर्ट ने गिरफ्तारी वारंट जारी किया है।

खबर के अनुसार आज से करीब 19 वर्ष पूर्व कृषि उपज मंडी सचिव रहते हुए आईएएस ललित दाहिमा पर आरोप लगा था कि वर्ष 2004 में उन्होंने फर्जी नाम पदों के आधार पर खोली गई व्यापारिक फर्मों के साथ सांठ गांठ करके 8 करोड रुपए का घोटाला किया था। इस मामले की रिपोर्ट स्थानीय एरोड्रम थाने में सन 2004 में मंडी सचिव मनीष सिंह कराई थी।  इसके बाद जांच ईओडब्ल्यू को सौंप दी गई। ईओडब्ल्यू में जांच करीब 7 साल तक चली। जांच के बाद 28 दिसंबर 2011 को एलडीसी ओमप्रकाश कानूनगो सहित 23 फर्मों के मालिकों के खिलाफ मुख्य चालान पेश कर दिया गया। इस मामले में करीब 23 व्यापारी, 5 मंडी कर्मचारी सहित कुल 28 आरोपी बनाए गए थे। इसके बाद दिसंबर 2013 में तत्कालीन मंडी प्रांगण प्रभारी सतीश परेता, सहायक उपनिरीक्षक दिनेश शर्मा, सहायक उपनिरीक्षक सरदारसिंह राठौर, मंडी सहायक उपनिरीक्षक दिलीप रायकवार व दैनिक वेतन भोगी संतोष पटेल के खिलाफ भी धोखाधड़ी में चालान पेश कर दिया गया। बावजूद दाहिमा के खिलाफ चालान नहीं पेश किया गया और बचाने की कोशिश चलती रहीं। जबकि ईओडब्ल्यू की जांच में पांच बिंदुओं में दाहिमा को ही दोषी बताया था। तीन साल बाद जज जयप्रकाश सिंह की अदालत में ईओडब्ल्यू को ललित दाहिमा के खिलाफ पूरक चालान पेश करना पड़ा। मामले की ताजा सुनवाई पर दाहिमा की ओर से अधिवक्ता ने उपस्थित होकर तीन सप्ताह तक हाजिरी से छूट का अनुरोध किया। कोर्ट ने कहा कि आरोपी अभी तक कोर्ट में पेश नहीं हुआ है। पांच साल पुराना प्रकरण होने के बाद भी आरोपी समन तामिल नहीं होने दे रहा है। इसके बाद अदालत ने दाहिमा के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया। उन्हें 19 फरवरी को कोर्ट में पेश करने के आदेश ईओडब्ल्यू एसपी को दिए गए हैं।

डेढ़ लाख पन्नों का था चालान

वर्ष 2011 में मंडी लिपिक कानूनगो सहित 23 व्यापारिक फर्मों के खिलाफ जो चालान पेश किया गया था वह करीब डेढ़ लाख पन्नों का था। मामले में व्यापारी जगदीश तिवारी, दिलीप अग्रवाल, आशीष गुप्ता, अनिल मित्तल, आनंद गुप्ता, अमित गर्ग, रवि काकाणी, मनीष गोयल, चंद्रशेखर अग्रवाल, आवेश गर्ग, हरीश गलकर, अश्विन गोयल, सौरभ मंगल, आनंदकुमार जैन, कैलाशचंद्र, मुरारीलाल अग्रवाल, संजय गर्ग, बाबूलाल अग्रवाल, श्यामसुंदर अग्रवाल, विजयकुमार अग्रवाल व सचिन मंगल आरोपी बनाए गए। तत्कालीन मंडी सचिव मनीष सिंह ने के अनुसार 23 फर्मों के बनाए गए लाइसेंसों में मंडी के नियमों की अनदेखी की गई और बिना मंडी शुल्क के ही लाइसेंस जारी कर दिए गए। आरोपियों ने एक-दूसरे की पहचान पेश की और संगठित रूप से साजिश रची थी। इसी के चलते लाइसेंस बनते गए। मंडी ने लाइसेंस में दर्ज पतों पर मंडी शुल्क वसूली के लिए नोटिस भेजे तो पते ही फर्जी निकले। इससे करीब आठ करोड़ से ज्यादा का घपला हुआ।

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