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मदिंरो मे ताले डले है।और भगवान इंसान के रूप में सामने खड़े है।

x    उज्जैन। लॉकडाउन कैसा विचित्र समय है।मंदिरो में ताले डले  है।परंतु भगवान के रुप मे इसांन जगह- जगह खडे है।एक और जहां जरूरतमंदों के पेट भरने का महायज्ञ चल रहा है।वहीं पुलिस और डॉक्टरो का काफिला देवदूत बनकर मौतों से लढ रहा है। इस समय बेबस ,गरीब और जरूरतमंद तो वाकई परेशान होता दिखाई दे रहा है। लॉकडॉउन में ज्यादातर फजीहत उनकी हो रही है। जो बाहर से यहाँ आकर किराए मकान में रहे हैं। उनके पास राशन कार्ड तक नहीं है, ना कोई काम धंधा है। बेबसी की जो सच्चाई आज सामने आई है।   उसमें ढांचा भवन क्षेत्र में रहने वाली एक महिला की दास्तां ने मन को झकझोर कर दिया। महिला ने अपने दो दिन से भूखे 5 साल के बच्चे के लिए खाने की मदद के लिए सूखे राशन की सूची खाना वितरण करने वाली संस्था के कार्यकर्ता के पास भेजी तो उसनें बगैर हकीकत जाने उसे  सोशल मिडिया पर सार्वजनिक रुप से महिला को फर्जी बता दिया।आश्चर्य जनक बात तो यह है कि जिस ग्रूप पर "गरीबी" का मजाक उढाया गया।उस ग्रुप मे कई अधिकारी सहित "कलेक्टर" भी है। इस घटना को लेकर जिम्मेदारो को गैर जिम्मेदारो के हाथ से जिम्मेदारी वापस लेना चाहिए ।"नादान की दोस्ती"जी का "जंजाल" न बन जाये।यह जानकारी संस्था स्वर्णिम भारत मंच के संयोजक दिनेश श्रीवास्तव को पता लगी तो वे महिला की तत्काल मदद के लिये पहुंच गये।और मदद की। स्वर्णिम भारत मंच जैसे  संगठन और प्रशासनिक अमले के साथ विभिन्न संस्थाओं के सदस्य महामारी में जो सहयोग प्रदान कर रहे है।उनके लिए यही कहना चाहूंगा कि  "कलयुग" में "सतयुग" का कुछ ऐसा नजारा नजर आ रहा है। कि "मंदिरों" में ताले डाले हैं और "भगवान इंसान" के रूप में हर जगह खड़े हैं। और इस बात को झूठ साबित करने के लिए अडे हैं कि कौन कहता है कि "कलयुग" में "भगवान अवतरित" नहीं होते हैं "भगवान तो इंसान" में ही रहते हैं ।जब- जब इंसान मानवता दिखाएगा ,उसमें भगवान नजर आएगा। और आस्था को जिताएगा। समय "विकट" है, लेकिन "जीत निकट" है। वक्त बिताना है जरा और मानवता दिखाना है। महामारी जहां मिले उसे एकजुट होकर हराना है। पंकज पांचाल  (संपादक) @9424515148

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