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कई निराश्रित महिलाओं के जीवन को दी नई दिशा : पिछले 22 वर्षों से समाज सेवा से जुड़ी हैं उज्जैन की श्रीमती व्यास


शहर की एहसास समाज कल्याण समिति की अध्यक्ष श्रीमती वर्षा व्यास सन 1998 से निरन्तर समाज सेवा कर रही हैं। वर्तमान में वे महिला थाना और वनस्टॉप सेन्टर में काउंसलर और अजाक थाना ज्यूरी व मानव दुर्व्यवहार निरोधक सेल की सदस्य के पद पर रहते हुए समाज सेवा के प्रति अपनी भूमिका का पूर्ण निष्ठा से निर्वहन कर रही हैं।

जब उनसे इस क्षेत्र में आने की वजह पूछी गई तो उन्होंने बताया कि वे शुरू से ही दूसरों के जीवन के उत्थान और जिन्दगी में खुशियां लाने के लिये कुछ करना चाहती थीं। उनके पति सेना में थे। सेवाभाव की प्रेरणा उन्हें उनके पति से ही मिली। सबसे पहले उन्होंने कैरियर की शुरूआत महिला थाने में बतौर काउंसलर प्रारम्भ की। उस समय एक नाबालिग बच्चे को चोरी के प्रकरण में थाने में लाया गया था। बच्चे के पिता की मृत्यु हो गई थी और जब वह थाने में लाया गया था, तब काफी दयनीय स्थिति में था। उसने मजबूरी में चोरी की थी।

इस घटना से श्रीमती व्यास काफी प्रभावित हुईं। उन्होंने बच्चे की काउंसलिंग कर उसे बाल सम्प्रेषण गृह भेजा। उस बच्चे को देखकर उन्हें ऐसा लगा कि न जानें ऐसे और कितने लोग लोंगे, जो विपरीत परिस्थितियों में अक्सर घुटने टेककर गलत रास्ता अपना लेते हैं। यदि ऐसे लोगों को समझाईश दी जाये तो वे दोबारा अपनी जिन्दगी की नई शुरूआत कर सकते हैं। बस इस घटना से ही उन्हें समाज सेवा में निरन्तर आगे बढऩे की एक ठोस वजह मिली।
श्रीमती व्यास द्वारा पति-पत्नी की काउंसलिंग कर सैकड़ों घरों को टूटने से बचाया गया। इस दौरान उन्हें लगा कि कई बार बहुत छोटी-सी बात पर भी परिवार टूटने की नौबत आ जाती है, जो कि नहीं होना चाहिये। श्रीमती व्यास द्वारा एहसास समाज कल्याण समिति का संचालन सन 2006 से किया जा रहा है। इस समिति में 12 से 15 लोग हैं। समिति के सचिव तरूण व्यास हैं तथा अधीक्षिका सुश्री देवांशी श्रीवास्तव हैं। समिति द्वारा संचालित स्वाधार गृह पर कई निराश्रित महिलाएं जिन्हें या तो घर से निकाल दिया गया है या जो घर जाना नहीं चाहती। इसके अलावा घरेलु हिंसा और दहेज प्रताडऩा से पीडि़त महिलाएं लाई जाती हैं, उनका ध्यान रखा जाता है, उनकी काउंसलिंग की जाती है, उनसे पूछा जाता है कि अब वे आगे क्या करना चाहती हैं। यदि वे घर वापस समझौता कर जाना चाहती हैं तो उसके अनुरूप कार्य किया जाता है।

इसके अलावा संस्थान में महिलाओं को स्वावलम्बी बनने हेतु ब्यूटी पार्लर कोर्स, सिलाई, कढ़ाई, कुकिंग, कपड़े के बैग बनाना, भगवान की पोशाखें बनाना आदि सिखाया जाता है। यदि कोई महिला पढ़ाई कर नौकरी करना चाहती है तो इसमें भी उनकी सहायता की जाती है तथा जीवन में आगे बढऩे की समय-समय पर प्रेरणा देकर महिलाओं के जीवन को नई दिशा प्रदान की जाती है। इस प्रकार यह संस्था महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक सेतु का कार्य कर रही है।

श्रीमती वर्षा व्यास द्वारा जेलों में कैदियों के सुधार और उन्हें स्वावलम्बी बनाने के लिये भी कई कार्य किये गये हैं। एमपी सीएसटी द्वारा 2009 में महाकाल मन्दिर से प्राप्त फूलों की खाद बनाने का प्रोजेक्ट दिया गया था, जिसमें उनके द्वारा जेल में कई कैदियों को खाद बनाये जाने की ट्रेनिंग दिलवाई गई। श्रीमती व्यास द्वारा कई महिला एवं पुरूष कैदियों को स्वरोजगार के लिये तैयार किया गया। साथ ही ईग्नू के केन्द्र के माध्यम से जेल में कैदियों को पढ़ाई करने का अवसर भी प्रदाय किया गया। उनके द्वारा जेलों में पढ़ाई के केन्द्र खोले गये।

सन 2003 में श्रीमती व्यास पत्रकारिता से भी जुड़ी। समाज में जागरूकता लाने के लिये उनके द्वारा मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी किया जा रहा है। जब उनसे पूछा गया कि दिनभर इतने सामाजिक कार्यक्रमों के बावजूद वे तनावरहित कैसे रह लेती हैं तब उन्होंने बताया कि वे हर कार्य को करते समय सिर्फ यही सोचती हैं कि नरसेवा से बड़ा और कोई कार्य नहीं है। इसीलिये समाज सेवा करते समय उन्हें मानसिक तनाव नहीं होता, बल्कि एक प्रकार की खुशी और आत्मीय संतोष प्राप्त होता है। हां थकान जरूर होती है, जिसे वे मेडिटेशन के माध्यम से दूर करती हैं। श्रीमती व्यास द्वारा समय-समय पर स्कूलों में पहुंचकर बच्चों को गुड टच बेड टच के बारे में भी बताया जाता है। साथ ही उन्हें पॉक्सो एक्ट के बारे में भी समझाया जाता है। आने वाले समय में उनकी संस्था द्वारा समाज में बढ़ रही नशे की प्रवृत्ति को रोकने के लिये काउंसलिंग का कार्य भी प्रारम्भ करने पर कार्य योजना बनाई जा रही है।
महिलाओं के प्रति सन्देश में उन्होंने कहा है कि नारी सम्मान हर जगह होना चाहिये। हम परिवार में लडक़ों को समझायें कि वे महिलाओं का सम्मान करें। समाज में भले ही महिलाओं को देवी न समझा जाये, फिर भी कम से कम उन्हें इंसान तो समझें। महिलाओं को हर क्षेत्र में बराबरी का हक दिया जाना चाहिये और यह परिवर्तन हमारे घर से ही शुरू होना चाहिये।

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