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शहर के गयाकोठा तीर्थ का है पितरों के तर्पण में विशेष महत्व

उज्जैन 17 सितम्बर। सनातन धर्म परम्परा के अनुसार श्राद्धपक्ष में अपने वंश के पूर्वजों के तर्पण का जितना महत्व बिहार के गयाजी तीर्थ का है, उतना ही महत्व उज्जैन के गयाकोठा तीर्थ में तर्पण का है। कहा जाता है कि श्राद्ध का मूल श्रद्धा है। सनातन धर्म के अनुसार परिवार की पूर्वज पितृलोक में वास करते हैं तथा प्रतिवर्ष में केवल सोलह दिन अपने परिजनों से पिण्डदान और जलदान की अपेक्षा से वे पृथ्वीलोक पर आते हैं। जब परिवार के लोग भगवान विष्णु के निमित्त जलदान और पिण्डदान करते हैं तो उसके अग्रभाग को प्राप्त कर उनकी आत्मा को शान्ति और तृप्ति मिलती है। प्रतिवर्ष श्राद्धपक्ष के दौरान देश व दुनिया से यहां लोग अपने पूर्वजों के तर्पण और पिण्डदान का कार्य करने हेतु यहां आते हैं। यूं तो श्राद्धपक्ष की प्रतिपदा से लेकर तेरस तक यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन श्राद्धपक्ष की चतुर्दशी और सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या के पर्व पर यहां पिण्डदान व तर्पण के लिये काफी संख्या में दूर-दूर से लोग आते हैं।

वर्तमान में जिला प्रशासन द्वारा कोरोना संक्रमण के चलते गया कोठा मन्दिर में श्रद्धालुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया है, परन्तु पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिये श्रद्धालुओं ने मन्दिर के समीप स्थित परिसर में मास्क लगाकर व सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए सोलह दिनों तक अपने पूर्वजों का तर्पण और श्राद्ध किया।
गयाकोठा तीर्थ के मुख्य पुजारी पं.आशीष गुरू ने जानकारी दी कि स्कंदपुराण के आवन्त्य खण्ड में गयाकोठा तीर्थ का उल्लेख मिलता है। उज्जैन के गयाकोठा तीर्थ में भी तर्पण और पिण्डदान का उतना ही महत्व है, जितना बिहार के गयाजी का है। यह तीर्थस्थल द्वापर युग के समय का माना जाता है। गयाकोठा तीर्थ अंकपात क्षेत्र में स्थित है। इससे कुछ दूरी पर ही महर्षि सान्दीपनि मुनि का आश्रम स्थित है, जहां पर द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलराम के साथ विद्या ग्रहण करने के लिये आये थे। भगवान श्रीकृष्ण की सुदामा के साथ विश्वविख्यात मित्रता भी इसी आश्रम में हुई थी।

पुराणों में उल्लेख मिलता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपने गुरू से अत्यन्त अल्प समय में 14 विद्या व 64 कलाओं का ज्ञान प्राप्त किया था। शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात जब गुरू दक्षिणा देने की बारी आई, तब गुरूमाता ने कहा कि उनके सात पुत्र जिन्हें राक्षस अपहरण कर ले गये थे, उन्हें यदि वे दोबारा ला सकें तो यही उनकी गुरू दक्षिणा होगी। इस पर श्रीकृष्ण ने जब ध्यान किया तो उन्हें पता चला कि सात में से छह पुत्र तो दिवंगत हो चुके थे, एक पुत्र जीवित था, जिसे उन्होंने महर्षि सान्दीपनि को गुरू दक्षिणा के स्वरूप लाकर दिया।

गुरू के छह दिवंगत पुत्रों के श्राद्ध के लिये भगवान श्रीकृष्ण ने फल्गु नदी के किनारे बिहार के गयाजी तीर्थ क्षेत्र के स्थान पर उज्जैन में ही फल्गु नदी को प्रकट किया और गुरू के दिवंगत पुत्रों का श्राद्ध व तर्पण किया। इस स्थान का विशेष महत्व इसलिये भी है, क्योंकि यहां सप्तऋ षि व उनकी माता अरूंधती की प्रतिमाएं और भगवान विष्णु के सोलह चरण है तथा दो शिवलिंग है, जिसमें से एक भगवान शिव तथा दूसरा भगवान विष्णु का प्रतीक है, जिससे हरिहर मिलन के दर्शन मन्दिर में होते हैं। इसीलिये इस स्थान में श्राद्ध का महत्व बिहार के गयाजी में श्राद्ध के महत्व से एक तिल से अधिक है।

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